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एक और बुजदिली...

झारखण्ड राज्य के गढ़वा जिलें में कल शनिवार 21 जनवरी को अपरहण 11:15  बजे नक्सलियों ने जिस तरह अपने नापाक इरादों को अंजाम देते हुए 13 जवानों की हत्या तथा जिला परिषद् अध्यक्ष समेत चार को अगवा कर लिया उससे एक बार फिर नक्सलियों की बुजदिली सामने आ गयी ! हालांकि नक्सलियों द्वारा की गयी लैंडमाइंस विस्फोट कर जवानों की निर्मम हत्या कोई नयी बात नहीं है, परन्तु  नक्सलियों द्वारा बार बार की जा रही ऐसी घटना से वो अपनी पहचान खोती जा रही है! जल,जंगल,जमीन के लिए शुरू किया गया अन्दोलन आज निर्मम हत्या,विस्फोट,वसूली, भयवाद का रूप ले चूका है! शनिवार की घटना में नक्सलियों ने जिस तरह विस्फोट के बाद घायल 11 जवानों को सर में सटा कर गोली मर दी तथा घायल थाना प्रभारी रामबली चौधरी और चालक सुनील को एंटी-लैंड माइंस वाहन में डाल जिन्दा जला दिया इससे उनकी बुजदिली तथा निरशंस्ता  का पता चलता है ! इस घटना ने ये साबित कर दिया ये नक्सली बन्दुक वाले नामर्द (हिजड़े) है(माफ़ कीजिये मैं यहाँ पर अपशब्दों का प्रयोग कर रहा रहा हूँ क्योंकि इन नक्सलियों की आये दिन छुपकर की जाने जाने ओछी हरकत के लिहाज से अब इन के लिए यही शब्द उपयुक्त है), जो बन्दुक तो हमेशा साथ रखते है परन्तु हमले हमेशा छिप कर ही करते हैं!
       अब वक्त आ गया है के इनके निरंतर बढ़ते दुस्साहस का मूंह तोड़ जवाब दिया जाए और इनके धार को तभी कम किया जा सकता है जब इनके  खिलाफ सेना का इस्तेमाल किया जायेगा, आखिर क्या कारण है के आये दिन ऐसी होने वाली घटना से हम अपने जवानों को खोते हा रहे हैं, तो इसका सबसे बड़ा कारण है गोरिल्ला वार में इन जवानों को निपुण नहीं होना साथ ही साथ नक्सली क्षेत्रों से अंभिग्ग होना, एक दुसरे के बीच comunicate  में कमी,सुझबुझ की कमी आदि है, चूँकि सेना इन सभी कामों में निपुण होता है अतएव इन नामर्दों(हिजड़ों) को जड़ से उखाड़ फेकने का एक मात्र उपाय सेना ही है ! पर सवाल ये है के क्या हम अपने ही लोगों पर सेना के हमले या हवाई हमले करेंगे, जैसा के कुछ बुधिजिवियों(नक्सली द्वारा की जा रही हिंसक तथा उग्र आन्दोलन का परोक्ष रूप से समर्थन भी करते हैं) का तर्क है के ये नक्सली कहीं बाहर से नहीं आये बलके हमारे अपने हैं, जो सिस्टम के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं, अतः हम अपने ही लोगों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं! पर इनको बस मै इतना ही कहना चाहता हूँ के नक्सलियों द्वारा आये दिन होने वाले विस्फोट,बंदी से होने वाले नुकशान, School,पूल-पुलिया, सरकारी भवन को उड़ाने से होने  वाले असर क्या America के लोगो को होती है क्या इन घटना के पीड़ित हमारे अपने नहीं है, तब उनकी बोलती बंद क्यों हो जाती है जो नक्सलियों को हमारे अपने ही है बताने पे तूले रहते हैं, क्या शनिवार की घटना में मारे गए 13 जवानों के परिवार हमारे अपने नहीं है, क्या ये हमारे बीच हमारे समाज के लोग नहीं हैं! इन जवानों ने तो हम सब को इन नामर्दों(नक्सली) से सुरक्षित रखने हेतु अपनी जान गवा दी, पर ये नामर्द(नाक्सली) किनकी सुरक्षा में इन परिवारों का घर उजाड़ दिया! अब हम किस मूंह से इन्हें अपना कहें, क्या ऐसे होते अपने, जो अपनों का ही जान ले लेते हैं! और अगर ये हमारे बीच के ही हमारे अपने ही हैं तो एक कोढ़ बीमारी की तरह, जिस तरह कोढ़ बीमारी मरीज की हुलिया बिगाड़ देता है उसी तरह नक्सलवाद भी  हमारे Democracy(लोकतंत्र) का हुलिया बिगड़ता जा रहा है! जिस तरह कोढ़ का उपचार नहीं करने के उपरांत पूरे शारीर को गला देता है ठीक उसी तरह अगर जल्द इस नक्सलवाद का इलाज नहीं किया गया तो ये हमारे पूरे लोकतंत्र को गला कर रख देगा! अतएव ये जरूरी रह गया है के जिस तरह मरीज के कोढ़ वाले अपने ही हिस्से को अपने ही शरीर से काटकर अलग कर दिया जाता है ठीक उसी तरह अपने ही लोगो को जो नक्सलवाद का लबादा ओढ़ चूका है को अपनों के बीच से काटकर हटा देना जरूरी रह गया है, अर्थात नक्सलवाद का समूल नाश आवशयक रह गया है! और ये तभी होगा  जब इनके खिलाफ सेना का opration  चलाया जाये !